वांछित मन्त्र चुनें

तं स॒बाधो॑ य॒तस्रु॑च इ॒त्था धि॒या य॒ज्ञव॑न्तः। आ च॑क्रुर॒ग्निमू॒तये॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ sabādho yatasruca itthā dhiyā yajñavantaḥ | ā cakrur agnim ūtaye ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। स॒ऽबाधः॑। य॒तऽस्रु॑चः। इ॒त्था। धि॒या। य॒ज्ञऽव॑न्तः। आ। च॒क्रुः॒। अ॒ग्निम्। ऊ॒तये॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:27» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:29» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:6


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (सबाधः) दुष्ट व्यसनों के नाशकर्त्ता (यतस्रुचः) उद्योगयुक्त कर्म साधनों के सहित (यज्ञवन्तः) प्रशंसा करने योग्य प्रयत्न करनेवाले जन (धिया) बुद्धि वा कर्म से (ऊतये) रक्षण आदि के लिये (अग्निम्) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वान् पुरुष को (आ) (चक्रुः) आदर करते हैं वैसे (तम्) उस विद्वान् पुरुष की (इत्था) इसी प्रकार आप लोग भी सेवा करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे बुद्धि और कर्म में चतुर पुरुष उत्तम व्यवहारों को सिद्ध करते हैं, वैसे ही धर्म आदि को जानने की इच्छायुक्त पुरुष विद्वान् जन को प्रसन्न करके उत्तम गुणों को ग्रहण करें ॥६॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा सबाधो यतस्रुचो यज्ञवन्तो जना धियोतयेऽग्निमिव विद्वांसमाचक्रुस्तमित्था यूयं सेवध्वम् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (सबाधः) दुर्व्यसनानां बाधेन सह ये वर्त्तन्ते (यतस्रुचः) यता उद्यताः स्रुचः कर्मसाधनानि यैस्ते (इत्था) अनेन प्रकारेण (धिया) प्रज्ञया कर्मणा वा (यज्ञवन्तः) प्रशस्ता यज्ञाः प्रयत्ना येषान्ते (आ) (चक्रुः) कुर्युः (अग्निम्) पावकमिव विद्वांसम् (ऊतये) रक्षणाद्याय ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यथा प्रज्ञाकर्मकुशलाः सद्व्यवहारान् साध्नुवन्ति तथैव जिज्ञासवो विद्वांसं प्रसाद्य शुभान् गुणान् प्राप्नुवन्तु ॥६॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! जसे बुद्धी व कर्मात चतुर पुरुष उत्तम व्यवहारांना सिद्ध करतात, तसे धर्म इत्यादीला जाणण्याची इच्छा करणाऱ्या पुरुषांनी विद्वान लोकांना प्रसन्न करून उत्तम गुणांना ग्रहण करावे. ॥ ६ ॥